सतनाम धर्म के प्रमुख तीर्थ/धाम और मानव का मानव से साक्षात्कार - Satnam Dharm (सतनाम धर्म)

शनिवार, 27 सितंबर 2014

सतनाम धर्म के प्रमुख तीर्थ/धाम और मानव का मानव से साक्षात्कार

सतनाम धर्म के प्रमुख तीर्थ/धाम और मानव का मानव से साक्षात्कार

        सतनाम धर्म के अन्तर्गत प्रमुख चार धाम क्रमश: गिरौदपुरी धाम, भण्डारपुरी धाम, खडुवापुरी धाम और खपरीपुरी धाम है l गिरौदपुरी धाम एवं खडुवापुरी धाम के गुरूगददी नसीन धर्मगुरू विजयगुरू साहेब है तथा भण्डारपुरी के गुरूगददीनसीन धर्मगुरू बालदास साहेब जी हैं l

        सतनाम धर्म के चारो प्रत्येक वर्ष अलग-अलग अवसरों पर मेला का आयोजन होता है l इन धामों में मेला के दौरान संत समाज के समस्तगुरूजनों का दर्शन सतनाम धर्म के अनुयायियों के लिए स्वर्ग जैसे सुख प्रदान करती है, मेला के अवसर पर सतनाम धर्म के अनेक विदवान और संतजनों का आगमन होता है इस अवसर पर अनेक संतगण समाधी लेते है समाधी अर्थात भू-गर्भ के भीतर प्रवेश करते है और सतनाम पुरूष और परमपुज्यनीय गुरूघासीदास के आशिर्वाद से सजीवन वापस समाधी पश्चात हमें दर्शन प्रदान करते हैं समाधी उपरांत इन संतजनों के दर्शन से जीवन धन्य हो जाता है क्योंकि सतनाम धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब कोई संत समाधीलेता तब उन्हें परमपुज्यनीय गुरूघासीदास जी का विशेष आशिर्वाद प्राप्त रहता है इसलिए इनके दर्शन मात्र से जीवन भर के लिए सतनाम धर्म के प्रति आस्था में हजार गुणा बढोत्तरी हो जाती है l

        सतंजन समाधी से वापस आकर सिद्ध करते है और हमें संदेश देते हैं- कि हमारा सतनाम धर्म आदि धर्म है, सतनाम धर्म से ही अन्य धर्मो का उदय हुआ है, इसलिए किसी भी धर्म और उनके अनुयायी हमारे लिए गैर नही हैं, वे सभी हमारे है l हमें परमपुज्यनीय गुरूघासीदासजी का वह संदेश पुन: स्मरण में आता है- मनखे-मनखे एक समान और हम अपने मानव होने पर सतनाम धर्म गर्व करने लगते हैं l इसके साथ ही हमें यह अवश्य ही ध्यान देना चाहिए कि हम मानव जो मूल रूप से आत्मा है और हम जैसे ही समस्त जीव धारी में भी आत्मा है जो हजारो करोड से परमात्मा के मूलरूप से पुत्र ही हैं और परमात्मा हम समस्त जीवधारियों के पिता हैं, रचनाकार है इसलिए हमें जाति-पॉति के प्रपंच में नही पडते हुए मनखे-मनखे एक समान और हम सब जीवधारी सगे भाई-बहन हैं के सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए l इसीलिए परमपुज्यनीय गुरूघासीदास ने कहा है- मांश भक्षण नही करें और न ही पशु बली दे मतलब किसी भी स्थिति में जीव हत्या न करें क्योंकि मूल रूप से वह जो आज बकरा-बकरी, गाय-बैल, मछली और मुर्गा-मुर्गी या अन्य रूप में जीवित प्राणी है वे हमारे भाई-बहन ही हैं l हम मानवप्राणियों के लिए अत्यन्त दूर्भाग्य की बात है कि हम जीव जगत के समस्त प्राणियों में सबसे अधिक सक्षम और ज्ञानी होने के बावजूद भी अपनों को नही पहचान पा रहे हैं और परमपिता परमात्मा के अंश होते हुए भी उनके ही अंश का हत्या करते रहें है और उनके मांश को खा रहे हैं, इतना ही नही हम मानव-मानव में ही भेद कर, जाति, धर्म और राज्य के नाम पर कई भिन्न-भिन्न स्तरों में बार-बार टूकडे टूकडे करके बांट रहे हैं और इन्ही आधार पर उनसे भेदभाव करते आ रहे हैं जो ऐसा मानने/स्वीकारने और करने वालों के लिए बडी शर्मकी बात है l आज आप सभी मानव प्राणियों से मेरा विनती है कि आप स्वयं को पहचानो और साबित कर दो कि मानव समस्त प्राणियों में अधिक ज्ञान और योग्यता रखने वाला है प्राणी है जो आत्मा और परमात्मा के बीच के संबंधों को अरबों करोंड शताब्दि से बनाये रखे हैं l आज भी समस्त आत्माधारियों के बीच के रिस्तों को बरकरार बनाये रखे हैं इसलिए हम ही परमात्मा के सच्चे सुपुत्र हैं l

        जो मनुष्य आत्मा-आत्मा के बीच के बंधुत्व संबंधों से अनभिज्ञ है, अनजान है या फिर नही मानता वह किसी भी स्थिति में महान मानव का आचरण नही जानता है/नही करता है अर्थात मानव जैसा व्यवहार नही करता है तो हम ऐसे मुर्ख अज्ञान आदमी से दया करें और भगवान से प्रार्थना करें कि वह उन्हें मुर्खता से मुक्ति दे और सच्चे अर्थों में मानव बनाये l आप सबके लिए एक छोटा सा उदाहरण प्रस्तुत करता हूं जो व्यक्ति मनखे-मनखे एक समान और हम सब जीवधारी सगे भाई-बहन हैं के सिद्धान्त को नही मानता उसपर हम विश्वास कैसे करें कि वह अपने ही माता और पुत्री से भोग की आपेक्षा नही रखेगा या यह कैसे विश्वासं करलेंकि वह जब भुखा होगा तो क्या वह शक्तिहीन मानव का मांश नही खायेगा या अपने ही वंशजों को नही मारेगा l

        मै बताना चाहूंगा कि जो व्यक्ति पुत्र मोह के कारण अपने ही पुत्री जो उनके पत्नि/स्वयं के कोख में पल रहा होता है का वध करा देता है तो क्या ऐसा इंसान अपने भोग-प्यास को मिटाने के लिए उनका प्रयोग नही करेगा या भुंख मिटाने के लिए उन्हे (अपने पुत्र/पुत्री को) नही खायेगा l अब बात आती है आपकी जिसे कुछ महानुभवों द्वारा जाति, धर्म या क्षेत्र के नाम पर अलग बना दिया गया है तो वह जो अपने ही पुत्र/पुत्री का ऐसा प्रयोग कर सकता है तो क्या आपके साथ ऐसा नही करेगा l इसलिए हे मानव आपसे मेरा विनती है कि आप इन विचारों को ही समाप्त कर दो, मांश खाना ही बंद कर दो, बलि देना ही बंद कर दो, परस्त्री को भी माता/बहन ही मानो मनखे-मनखे एक समान और और हम सब जीवधारी सगे भाई-बहन हैं के सिद्धान्तों का पालन प्रारंभ कर दो और देखना हम सब सतलोक/ स्वर्ग/जहन्नुम में निवास कर रहे होंगे l

        उक्त आग्रह को स्वीकारने से हम सभी वास्तव में मानव होंगे हममें से समस्त भेद समाप्त हो जायेंगे और तब हमें समस्त जीवधारियों में सतनाम पुरूष, ब्रम्हा-विष्णू-महेश, ईशु, अल्लाह और समस्त धर्मों के देवी-देवता मिलेंगे l

आचार्य हुलेश्वर जोशी,
ग्राम मनकी-लोरमी, जिला मुगेली
छत्तीसगढ 9406003006

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एतद्द्वारा सतनामी समाज के लोगों से अनुरोध है कि किसी भी व्यक्ति अथवा संगठन के झांसे में आकर धर्म परिवर्तन न करें, समनामी एवं सतनाम धर्म के लोगों के सर्वांगीण विकास के लिए सतनामी समाज का प्रत्येक सदस्य हमारे लिए अमूल्य हैं।

एतद्द्वारा सतनामी समाज से अपील है कि वे सतनाम धर्म की संवैधानिक मान्यता एवं अनुसूचित जाति के पैरा-14 से अलग कर सतनामी, सूर्यवंशी एवं रामनामी को अलग सिरियल नंबर में रखने हेतु शासन स्तर पर पत्राचार करें।