सतनामी हिन्दुओ की विभिन्न जातियों में से धर्मान्तरित नये पंथ/धर्म हैं। छग मे इनके प्रवर्तक गुरु घासीदास हैं। उन्होंने 1790 से 1850 करीब 60 साल तक जन मानस में देशाटन करते प्रचार प्रसार किये। कृषि पेशा हैं सात्विक खान पान आचरण गत शुद्धता और कड़ी मेहनत के चलते यह समुदाय तेज़ी से विकास किये इनके बढ़ते प्रभाव को रोकने 1860 में राजा गुरु बालक दास की हत्या के बाद इस समुदाय को नेस्तनाबूद करने (हिन्दू द्वेष भाव वे हिंदुत्व के खुलेआम अवहेलना करते थे।और अंग्रेज वे चाहते थे ये इसाई हो जाय।)दोनों मिलकर सतनामियो के ऊपर अनेक जुल्म किये जमींदारी /गौटीयाई छीने। गावो से बेदखल करवाए और अछूत घोषित करते चमार की उपजाति बना दिए गये। यह अजीब विडम्बना हैं कि एक जाति विहीन पंथ को जो हिन्दू धर्म के विकल्प में उनके समानांतर गठित हुवे उसे एक जाति की उप जाति बना दी गई !आज सतनामी लगभग 50 लाख की संख्या में छग सहित कई प्रान्तों में निवास रत हैं और सतनाम धर्म की संवैधनिक मान्यता के लिए प्रयासरत हैं। हलाकि 1926 में इसे स्वतंत्र जाति की मान्यता दी गई ।यदि सतनाम धर्म को मन्यता मिल गई तो समझिये यह दुनिया की प्रथम जाति विहीन वर्ग विहीन धर्म होगा।जो अंध विस्वास कर्मकांड पुरोहिती और तथाकथित ईश्वर और उनकी अलौकिकता से रहित या मुक्त होंगे।
लेख डॉ अनिल भतपहरी