जीवन में नारी की महत्ता - Satnam Dharm (सतनाम धर्म)

शनिवार, 25 जून 2016

जीवन में नारी की महत्ता

जीवन में नारी की महत्ता


मै जीवन में नारी की महत्ता सिद्ध करने के पूर्व आपको कुछ अत्यन्त सात्विक व हेल्दी भोजन जो किसी सुखयम जीवन की कल्पना पर खरा साबित हो का सजीव चित्र प्रस्तुत करता हूं। चित्र देखने के पूर्व आपको यह बताना आवश्यक सुझता हूं कि आपको समग्र चित्र देखकर आगे के शब्दों को पढने के पूर्व कुछ क्षण भर रूक कर चित्र को पूर्णतः समझने का यत्न करने के लिए निवेदन करता हूं। यह भोजन कितना स्वादिष्ट होगा, कितने सफाई/सरलता या फिर मेहनत से तैयार किया गया होगा। मै यह भी विचारनेे के लिए निवेदन करता हूं कि यह भोजन किसने बनाया होगा ?


जीवन में नारी की महत्ता समझने के लिए आपने इस चित्र को देखने/समझने में जितना उर्जा/समय खपत किया होगा उससे कही अधिक आपको सोचने के दौरान सुख अवश्य मिला होगा आपने अपने बचपन से लेकर अब तक के जीवन व उसमें अपने मां अथवा/व पत्नि या स्वयं के द्वारा बनाये नाना प्रकार के व्यंजनों को सोचकर ऐसा भी लगा हो कि यह भोजन आपके स्तर से बिलकुल निम्न स्तर का है। खैर ...... कोई बात नही। मुझे खुसी होगी कि आपको अपने मां/पत्नि (नारी) का सानिध्य प्राप्त रहता है यह हम सबके लिए अत्यंत सुख की बात है। 

आपको इन भोज्य पदार्थों की वास्तविकता से आपको अवगत कराता हूं - आप इसे मेरे घर में बने भोजन व दुकान से खरीदे हुए रेडिमेंट बिस्कुट समझने की भुल मत करना क्योंकि जब आज मै इतने स्वादिष्ट भोजन कर रहा था तब मेरे दिमाक में जो विचार चल रहा था उसका गहराई किसी वैज्ञानिक या शोधकर्ता से कम था। इसलिए आपको रिसर्च सेंटर में बना भोजन मान लेना चाहिए इसका मतलब यह कदापि नही है कि मैने केवल भोजन के बारे में सोचा होगा, उसके स्वाद के गहराई में डुब कर मैने भोजन का आनंद लिया होगा। आपको यह और तस्वीर प्रस्तुत करता हूं जिसमें केवल एक ही कुर्सी लगी हुई दिखाई दे रही होगी वह भी रिक्त बैठने वाले के इंतेजार में बिलकुल मायुस इससे आपको सोचते हुए थोडा तकलीफ हो सकती है क्योंकि यह खाली कुर्सी मेरे जीवन की निरसता है - सुख विहिनता है - वियोग और पुत्री के बाल लीला दर्षन सुख से वंचित होने का प्रमाण है। अब जब मै वियोग और पुत्री के बाल लीला सुख से वंचित होना जाहिर कर दिया तो आपको यह ज्ञात हो गया होगा कि मेरी एक छोटी सी नन्ही सी परी सी बेटी भी होगी। हां आप सही सोच रहे है मेरी बेटी दुर्गम्या जोषी है जिसका बाल लीला अपने चरम पर है, अर्थात मेरी बेटी 17 माह की है। वह अपने मां जो कृषि कार्यों में सहयोग के लिए गई है के साथ गांव गई है। 


अब मै बार बारी बाउल में रखे मीठा दूध/पुरी, प्लेट में रखे बिस्किट और टमाटर चटनी तथा कटोरी में रखे केला चिप्स के बारे में विस्तार से बताउंगा। इसके पहले यह बता देना चाहता हूं कि मेरी धर्मपत्नि व पुत्री को गांव गये अभी 03 दिवस ही हुए है फिर भी मै 03 रात्रि कभी तत्काल बना भोजन नही खाया है केवल शुबह का ही भोजन गरम करके खाया है। पुरी 24 घण्टे पूर्व आफिस में टिफिन ले जाने के लिए बनाया हुआ में से शेष है जिसे 24 घण्टे पूर्व की दूध जिसे रात्रि में मेहमान के रूप में दोस्त के घर जाकर खाने व वहीं सो जाने के कारण न तो पी पाया और न ही दही बना पाया था को पुनः शक्कर डालकर गरम किया और बाउल में पुरी के साथ डुबोकर रखा गया है। ये दोनो खाद्यपदार्थ अपने स्वाद के कारण मुझे बचपन का स्मरण भी कराया जिसके कारण थोडा खुसी जरूर है। प्लेट में रखे बिस्किट व टमाटर के चटनी का कोई विषेषता नही बता पाउंगा क्योंकि ये आज ही खरीदे बिस्किट और अभी के ही बनाये चटनी है परन्तु कटोरे के केला चिप्स के बारे में लम्बी कहानी है, हस्त मेकिंग है परन्तु छोडो भी यदि मै अपने केवल आज के ही खाने पर इतना लंबा कहानी लिख दिया तो आप पढते पढते थक जाएंगे कि मैने ये 03 दिन उसके बिना कैसे बिताए और आप नारी जीवन की अहमियत पर आधारित कहानी पढना ही छोड देंगे। मैने यह सब बाते इसलिए लिखा है ताकि पत्नि जो एक स्त्री है वही स्त्री जो मां भी होती है जब वह आपकी मां (स्त्री) होती है तो पूज्यनीय मानते हो और वही यदि आपके ही पुत्र या अन्य की मां (स्त्री) हो तो उन्हे अपमानित करने के लिए उनपर अनेकोनेक चुटकियां लिये जाते है। जबकि वह आपकी अपनी स्वयं की मां (स्त्री) हो या अन्य की मां (स्त्री) हो वह शक्ति स्वरूपा साक्षात् देवी ही होती है। चाहे वह मां के रूप में हो या फिर क्यों न पत्नि के रूप में ही क्यों न हो कम-से-कम उनकी उपयोगिता को ध्यान में रखकर उनका सम्मान करना चाहिए।

मेरे जीवन में तो सदैव से ही नारी का स्थान सर्वोत्तम रहा है जिसके कारण मै सदैव ही नारी का सम्मान करता हूं उन्हे पूज्यनीय मानता हूं। जब मै अत्यंत छोटा था मतलब अपने स्कूल षिक्षा के प्रारंभिक चरण में था तो मेरी परदादी माता श्यामा देवी का सानिध्य प्राप्त हुआ थोडा जब बडा हुआ और माता श्यामा देवी स्वर्ग को प्राप्त हो गये तो मैने दादी माता कली देवी का आश्रय लिया इन दोनो से ही मुझे अत्यंत प्रेम/मार्गदर्षन मिला जिन्हें मै गुरू के रूप में स्वीकारता हू। इसके साथ ही मुझे अपने बहनों से बहुत लगाव रहा है। जब युवा हुआ तो सहपाठी बहनों व दोस्तो का सहयोग व बंधुत्व ने भी मुझे नारी सम्मान योग्य बना दिया जिनका मै सदैव ही आभारी रहूंगा। अब आगे का कहानी तो आपको ज्ञात ही है कि मेरा विवाह हो चुका है और मेरी एक सुन्दर सी बेटी दुर्गम्या भी है जिनके क्षणिक वियोग से प्रेरित होकर मै यह लेख लिखने को अग्रसर हुआ हूं।

अंत में अब अपनी मां के बारे में थोडा लिखना चाहूंगा जिनका मेरे जीवन में इन सबसे अत्यधिक योगदान रहा है वैसे तो सबके जीवन में मां का स्थान सर्वोत्तम होता है उनका योगदान पूरे ब्रम्हाण्ड में सबके योगदान और प्रेम के योग से अधिक होता है। आपने पढा व सुना होगा सभी धर्मांे के धर्मग्रंथों में भी लिखा है कि माता स्वर्ग से भी श्रेष्ठ होती है। मै स्वर्ग को देखा नही हूं पढ और सुनकर केवल अनुभव किया हूं। मै अर्धनास्तिक हूं इसलिए स्वर्ग को केवल कल्पना और मनुष्य के आचरण को अनुशासन को बनाये रखने के लिए एक प्रलोभन मात्र मानता हूं जो बिलकुल सत्य है। परन्तु मां (जो स्त्री है) कोई काल्पनिक नही है कोई छलावा नही है और कोई प्रलोभन नही है केवल दात्री है, देने वाली है। स्वर्ग की भांति ही अमृत भी काल्पनिक है मगर मां (स्त्री) प्रत्यक्ष है समस्त दवाओं और दुआओं का योग है। सृष्टि है सृजनकर्ती है। 

जीवन में नारी की बस इतना ही छोटी सी महत्ता है कि नारी स्वर्ग की भांति काल्पनिक सुख नही है। कि नारी अमृत की भांति छलावा न होकर समस्त बिमारी के लिए दवा और दुआओं का योग है। नारी ही सुखदायिनी है नारी ही सुखकारिणी है नारी ही सृजनकर्ती है और नारी ही समग्र ब्रम्हाण्ड में सबके योगदान के योग के बराबर आपके जीवन का भागी है।


आचार्य हुलेश्वर जोशी
संस्थापक, आचार्य समाज

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