१. सतनाम धर्म प्रत्येक मानव को मानव का स्थान देता है ।
२. सतनाम धर्म में न कोई छोटा और न कोई बड़ा होता है, इसमें सभी को समानता का अधिकार प्राप्त है ।
३. जो ब्यक्ति सतनाम् धर्म को ग्रहण कर लेता है, उसके साथ उसी दिन से समानता का ब्यवहार जैसे बेटी देना या बेटी लेना प्रारम्भ हो जाता है ।
४. सतनाम् धर्म किसी भी जाति या धर्म का अवहेलना नही करता ।
५. सतनाम् धर्म हमेशा सच्चाई के पथ पर चलने की शिक्षा देता है ।
६. सतनाम् धर्म का प्रतीक चिन्ह जैतखाम है ।
७. सतनाम् धर्म में ७ अंक को शुभ माना जाता है ।
८. सतनाम् धर्म के मानने वाले दिन सोमवार को शुभ मानते है, इसी दिन परम पूज्य बाबा गुरू घासीदास जी का अवतार हुआ था ।
९. सतनाम् धर्म में गुरू गद्दी, सर्व प्रथम पूज्यनीय है ।
१०. सतनाम् धर्म में निम्न बातों पर विशेष बल दिया जाता है :
- (क) सतनाम् पर विश्वास रखना
- (ख) जीव हत्या नही करना
- (ग) मांसाहार नही करना
- (घ) चोरी, जुआ से दुर रहना
- (च) नशा सेवन नही करना
- (छ) जाति-पाति के प्रपंच में नही पड़ना
- (ज) ब्यभिचार नही करना।
११. सतनाम् धर्म के मानने वाले एक दुसरे से मिलने पर "जय सतनाम" कहकर अभिवादन करते हैं ।
१२. सतनाम् धर्म में सत्यपुरूष पिता सतनाम् को सृष्टि का रचनाकार मानते हैं ।
१३. सतनाम् धर्म निराकार को मानता है, इसमें मूर्ती पूजा करना मना है ।
१४. सतनाम् धर्म में प्रत्येक ब्यक्ति "स्त्री-पुरूष" जिसका विवाह हो गया हो, गुरू मंत्र लेना "कान फुकाना" अनिवार्य है ।
१५. सतनाम् धर्म में पुरूष को कंठी-जनेऊ और महिलाओ को कंठी पहनना अनिवार्य है ।
१६. सतनाम् धर्म में मृत ब्यक्ति को दफनाया जाता है ।
१७. सतनाम् धर्म में पुरूष वर्ग का दशगात्र दश दिन में और महिला वर्ग का नौवे दिन में किया जाता है ।
१८. सतनाम् धर्म में मृतक शरीर को दफनाने के लिये ले जाने से पहले पुरूष वर्ग को पूर्ण दुल्हा एवं महिला वर्ग को पूर्ण दुल्हन के रूप में शृंगार करके ले जाया जाता है ।
१९. परिवार के कुल गुरू जिससे कान फुकाया "नाम पान" लिया रहता है साथ ही मृतक के भांजा को दान पुण्य दिया जाता है ।
२०. माताओ को जब पुत्र या पुत्री की प्राप्ति होती है तो उसे छः दिन में पूर्ण पवित्र माना जाता है ।
२१. सतनाम् धर्म में महिलाओ को पुरूष के जैसा हि समानता का अधिकार प्राप्त है ।
२२. सतनाम् धर्म में लड़के वाले पहले लड़की देखने जाते हैं ।
२३. सतनाम् धर्म में दहेज लेना या दहेज देना पूर्ण रूप से वर्जित है ।
२४. लड़के वाले लड़की पक्ष के परिवार वालो को नये वस्त्र देता है साथ ही दुल्हन को उसके सारे सृंगार का समान दिया जाता है ।
२५. सतनाम धर्म में सात फेरे होते हैं जिसमें दुल्हन, दुल्हे के आगे आगे चलती है ।
२६. सतनाम् धर्म में शादी होने पर सफेद कपड़ा पहनाकर तेल चढ़ाया जाता है ।
२७. दुल्हे का पहनावा "जब बारात जाता है" सफेद रंग का होता है । पहले मुख्य रूप से सफेद धोती, सफेद बंगाली और सफेद पगड़ी का चलन था परन्तु आज कल लोग अपने इच्छानुसार वस्त्र का चुनाव कर रहे हैं परन्तु एक बात अवश्य होनी चाहिये कि जब फेरा "भांवर" हो तो सतनाम् धर्म के अनुसार सफेद वस्त्र जरुर पहनना चाहिये ताकि धर्म का पालन हो और शादी सतनाम् धर्म के अनुरूप हो । २८. दुल्हन के साड़ी व ब्लाउज हल्का पिले रंग का होता है ।
२९. सतनाम् धर्म में स्वगोत्र के साथ विवाह करना सक्त मना है ।
अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां
छत्तीसगढ़ की पावन धरा पर गुरू घासीदास जी का अवतरण सचमुच जीव जगत के जीवन में जोत जलाने के लिए हुआ था। गुरू ने नूतन व्यवस्था और नवीनधारा को परखा। उन्होंने पूॅजीवाद, समाजवादी तथा जातिवादी व्यवस्था के खिलाफ सत संदेश का प्रचार किया। गुरूजी ने सतनाम आंदोलन चलाकर सम्पूर्ण मानव को एक सूत्र में पिरोया और सतनाम आंदोलन से ही स्वाधीनता आंदोलन के स्वरूप का निर्धारण हुआ आगे चलकर स्वतंत्र भारत की कल्पना भी साकार हो सकी। सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप देने के लिये गुरूजी सघन दौरा कर समाजवाद के सिध्दांत को जन्म दिया। सतनाम आंदोलन को तीव्र गति को देने के लिये केन्द्र बिन्दु चिन्हित किया गया। सतनाम आंदोलन का मुख्य कार्यालय भंडारपुरी, तेलासी, बोड़सरा, चटुआ, खपरी, खडु़वा आदि स्थान से आंदोलन संचालित था। इनके अलावा सतनाम आंदोलन के छोटे-छोटे कई बनाये गये थे जहाॅ से आंदोलन का संचालन किया जाता था। छत्तीसगढ़ में खासकर बिलासपुर, मुंगेली, रतनपुर, पंडारिया, कवर्धा, गंड़ई खैरागढ़, राजनांदगांव, पानाबरस, दुर्ग, रायपुर, तेलासी, बलोदाबाजार, सिरपुर, राजिम, रायगढ़, जगदलपुर, उड़ीसा, के कुछ भाग नागपुर, चन्द्रपुर, सारंगढ़ कुदुरमाल, नारायणपुर, बीजापुर, कोन्टा, सुकमा, तक संचालित थे। गुरू घासीदास जी के पश्चात् इस आंदोलन को और तेज गति प्रदान करने में किसी को अह्म भूमिका दिखता है तो छत्तीसगढ़ के राजा गुरू बालकदास जी हैं अंग्रेजों के समय ही छत्तीसगढ़ में सतनाम आंदोलन का प्रभाव बन गया था। सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ गुरू के समतावादी व्यवस्था से प्रभावित थे। सतनाममय छत्तीसगढ़ में गुरू के प्रभाव से ब्रिटिश सरकार भी अंचभित थे। इसलिए गुरू बालकदास को ब्रिटिश सरकार ने राजा की उपाधि से विभूषित कर अपने ओर मिलाने का भरसक प्रयास किया। पर गुरू बालकदास में आजादी के सपने कूट-कूटकर भरा था, उन्होंने भारत के आजादी के लियें अपनों के साथ मिलकर नारायण सिंह को साथ लेकर काम किया। गुरू बालकदास ने अपने पिता के द्वारा चलाये रावटी प्रथा को तीव्र गति से बढ़ाया। इस गति में सोनाखान के बिझवार जमींदार रामसाय के पुत्र वीरनारायण गुरू के अच्छे मित्र रहे। दोनों ने अंग्रेजों के खिलाफ जमीदारी प्रथा, अकाल, भुख एवं अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष शुरू किया, यहीं कारण था कि गुरू बालकदास एवं वीरनारायण सिंह अंग्रेजों के लिए आंख की किरकिरी साबित हुए। सामंतवाद, साम्राज्यवाद तथा संभ्रातवाद के खिलाफ दोनों ने जमकर अगुवाई भी की। अन्याय, अत्याचार, रूढ़िवाद, और अंधविश्वास को जड़ से समाप्ति करने का बीड़ा भी गुरू बालकदास ने उठाया। अंग्रेजों ने गुरू के खिलाफ माहौल तैयार करने मुहिम चलाई, जिसमें मालगुजारों सामंतो व अपने को संभ्रांत समझने वालों ने अंग्रेजों का साथ दिया। छत्तीसगढ़ में सतनाम आंदोलन मूल रूप से सामाजिक आंदोलन का सामाजिक ढ़ंाचा में पहुंचाया, अंग्रेजो के खिलाफ प्रचार-प्रसार किया, गुरू का प्रभाव छत्तीसगढ़ के अनेक घरों तक पहुंचा। वे छत्तीसगढ़ समाज के बहादुर गुरू थे। गुरू ने सुरक्षा के लिये सेना का गठन कर उनका सुदृढ़ ढ़ंग से प्रशिक्षण चलाया। ब्रिटिश हुकूमत हिलने लगी थी। अंग्रेजों ने नई चाल चला छत्तीसगढ़ के अन्य लोंगो को मिलाकर गुरू की छवि धूमिल करना शुरू किया तथा गुरू के बढ़ते प्रभाव को समाप्त करने के लिये तरह-तरह का षड्यंत्र शुरू हुआ, गुरू बालकदास की ख्याति शक्तिशाली राजा के समान थी। गुरू ठाठ-बांट से रहते थे, हाथी पर सवार होकर सतनाम आंदोलन तथा सतनाम सेना का संचालन करते हुऐ रावटी प्रथा जारी की थी।
लेखक- श्री विष्णु बन्जारे सतनामी
सतनाम धर्म की ओर से जनहित में प्रसारित