सतनामी समाज के बेरोजगार युवक स्वयं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करें तथा साथ में समाज के छात्र-छात्राओं को निःशूल्क कोचिंगकराएं। नौकरीपेशा लोग, ऐसे बच्चों को पुस्तक इत्यादि खरीदकर दें।
सतनामी अपने घर मेंगुरूगद्दी स्थापित करे और आंगन में निशाना (छोटे आकार के जैतखाम) अथवाछत में सफेद झंडा लगाएं।
बेरोजगार युवक-युवतियों के लिए केन्द्र शासन एवं छत्तीसगढ़ शासन द्वारा बिना शूल्क के रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। इस संबंध मेंDDU-GKY,NSDC andCSSDA के तहत् सुविधा का लाभ
उठाएं।
ज्ञातव्य हो कि, सतनामी- सतनाम धर्म के अनुयायी हैं, सतनामी को हिन्दू कहना, बताना अथवा मानना सरासर झूठ है। ज्ञात हो सतनामी समाज सतनाम धर्म की संवैधानिक मान्यता के लिए प्रयासरत् है।
परमपुज्यनीय गुरू घासीदास बाबा के बताये मार्ग पर चलें, मूर्तिपूजा छोडें, सतनाम को मानें, मांस-मदिरा का त्याग करें, परस्त्री को माता-बहन मानें, सदैव सत्य का साथ दें।
सतनामी एवं सतनाम धर्म के अनुयायियों से आग्रह है कि वे सतनाम धर्म की संवैधानिक मान्यता के लिए शासन प्रशासन से शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांग करना प्रारंभ कर दें।
सतनाम धर्म के अनुयायियों के मार्गदर्शन हेतु सतनाम मार्गदर्शिका तैयार किया जा रहा है। कृपया इस संबंध में सुझाव आमंत्रित है।
छात्र-छात्राओं को वैज्ञानिक, डाॅक्टर, पाॅयलट, आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, इंजिनियर, प्रोफेसर, जज, अधिवक्ता इत्यादि बनने के लिए प्रेरित करें। इस संबंध में समाज के नौकरीपेशा लोगों से मार्गदर्शन करने हेतु विशेष अनुरोध है।
सतनामी कृषक परम्परागत कृषि के स्थान पर उन्नत कृषि अपनाएं। अपने खेत मेंफलदार वृक्ष (अनार, आम, मुनगा, केला, अमरूद, पपीता, नीबु, कटहल इत्यादि), मसाले (तेज पत्ता, दालचीनी, मीठानीम, इत्यादि), इमारती वृक्षएवंसब्जी इत्यादि लगाएं।
समाज के 10वीं उत्तीर्ण (शिक्षा में कमजोर एवं शारीरिक रूप से सक्षम) छात्र-छात्राओं को जिला पुलिस बल,छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, तथाकेन्द्र शासित प्रदेशों के पुलिस, केन्द्रीय सशस्त्र बलों(सीआरपीएफ, बीएसएफ, एसएसबी, आईटीबीपी) एवंतीनों सेनाओं (थल सेना, जल सेना, वायुसेना) में भर्ती हेतु प्रेरित करें।
सतनाम धर्म एवं अन्य धर्मों की उत्पत्ति
सतनाम धर्म - सतनाम धर्म समस्त धर्मों का मूल है सतनाम धर्म से समस्त धर्मों की उत्पत्ति हुई है। धीरे-धीरे जब मनुष्य का विकास होता गया तब मनुष्यों के विचारों में व्यापकता आईl विविधता आई और अपने अपने स्वार्थ पनपते गये जिससे लोग सत्य के मार्ग से भटकते गये और लोग धर्मभ्रष्ट होने लगे तो विभिन्न विद्वानों द्वारा अपने प्रभुत्वसम्पन्न गुणों के माध्यम से भांति भांति के धर्म का सृजन किया गया, इसप्रकार से समग्र विश्व में अनेकोनेक धर्म की स्थापना होती गई।