सतनाम धर्म के संस्थापक परमपुज्यनीय गुरूघासीदासजी द्वारा गौ-हत्या के विरूद्ध अनेको संदेश दिये गये फलस्वरूप गुरू अगमदास गोसाई के अगुवाई में सतनामी समाज के महान सपूतो जिनमें प्रमुख रूप से :- १. राजमहंत नैनदास मंत्री, २. राजमहंत अंजोरदास व्हाइस प्रेसीडेंट एवं ३. राजमहंत विशालदास एवं अन्य 27 सतनामी सपुतों द्वारा सन् 1937 में गौहत्या विरोधी अभियान चलाये फलत: अंगरेजो द्वारा एक महत्वपूर्ण परिपत्र जारी किया गया जिसका शीर्षक है- "श्री गौ-माता की जै" इसके तहत करमनडीह, ढ़ाबाड़ीह में बने विशाल बुचड़ खाना जिसमे प्रतिदिन हजारो बेजुबान जानवरो कि निरमम हत्या किया जाता था, उसे अंग्रेजो को बंद करना पड़ा ।
अगर हमारे इन सतनामी सपूतो का साथ दुसरे समाज वाले भी दिये होते तो सिर्फ करमडीह, ढ़ाबाड़ीह मे ही नही बल्कि पुरे भारत देश में गौ-हत्या पुरी तरह बंद हो गया होता । हमें गर्व है अपने उन महापुरूषो पर जिन्होने अपने दम पर इतना बड़ा मुहिम चलाकर सफलता प्राप्त की । और इस कार्य के लिये नैनदास और अंजोर दास को गौ-भक्त की उपाधी से सम्मानित किया गया ।
इस संबंध में ज्ञातव्य हो कि सतनाम धर्म में उस समय भी इतने शक्तिशाली/प्रभावशाली लोग थे कि क्रुर अंग्रेजों को भी झूकने पर मजबंर कर दिये l तो हम आज कैसे शक्तिहीन हो सकते हैं ?
सतनाम धर्म के इस कामयाबी के बाद यह गीत काफी प्रसिद्ध हआ, जिसे लोग धार्मिेक एवं सांस्क्रितिक कार्यक्रमों में गाया करते थे, वह इसप्रकार है :-
मोर नैनदास भईया
अंजोरदास भईया
गौ बध के छोड़ईया.......
मोर नैनदास भईया.....
नैनदास हर गोल्लर बनगे
अंजोरदास हर बीजरा
बिशाल महंत के गोठ ल सुनके
कतको ल आवय तीजरा....
मोर नैनदास भईया.....
अंजोरदास भईया
गौ बध के छोड़ईया.......
मोर नैनदास भईया.....
नैनदास हर गोल्लर बनगे
अंजोरदास हर बीजरा
बिशाल महंत के गोठ ल सुनके
कतको ल आवय तीजरा....
मोर नैनदास भईया.....
इसलिए मेरा आप सभी सतनामी भाईयों से निवेदन है कि आप अपने शक्ति को पहचानो, परमपुज्यनीय गुरूघासीदासजी द्वारा बताये गये मार्ग का अनुकरण कर स्वयं को सर्वोच्च प्रमाणित कर दो, आप सभी के जानकारी के लिए मुझे यह बताना आवश्यक लगता है कि हम सर्वदा से श्रेष्ठ है और सर्वदा श्रेष्ठ ही रहेंगे l कुछ सडयन्त्रकारियों द्वारा हमारे शक्तिको हमारे मनोसिथति को प्रभावित करने के लिए छोटेजाति के समकक्ष लाने के नियत से अनुसूचित जाति में शामिल कर दिया गया, परन्तु हम कभी इन कथित छोटेजाति के लोगों के समकक्ष थे ही नही वरन हम सदैव से ही ज्ञानी और संतजन थे, आप हमारे इतिहास को जानने का प्रयास करेंगें तो ही ज्ञात होगा कि हम कितने धर्मसम्पन्न थे अैार कितने धन सम्पन्न थे l इसलिए हे सतनामी भाईयों जागो और अपने सम्मान की पुर्नप्राप्ति के लिए स्वयं को ज्ञान, शक्ति एवं सम्पन्नता के माध्यम से श्रेष्ठ प्रमाणित कर दो ll सतनामी कभी किसी से छोटा था, है न रहेगा, न मानेगा, न स्वीकारेगा केवल सम्मान प्राप्ति के लिए भिन्न-भिन्न स्तरों में संघर्ष करेगा ll