परम् पूज्य बाबा गुरू घासीदास जी के द्वितीय पुत्र राजा गुरू बालकदास जी के सतनाम आंदोलन का असर इतना अधिक हुआ कि अंग्रेजो ने सन् १८२५ में पहली बार शिक्षा का द्वार हिन्दु धर्म में शुद्र कहे जाने वालो के लिये खोले । गुरू बालकदास जी के एकता और समरसता के आंदोलन से अंग्रेज प्रभावित होकर उन्हे राजा घोषित कर हांथी भेंट किये साथ ही अंग रक्षक रखने कि अनुमति भी दिये । शिक्षा के क्षेत्र में हुये इस परिवर्तन कानून जिसका पुरोधा हमारे गुरू रहे, उन्ही के कारण ही १८४८ में महाराष्ट्र के पूना शहर में माली समाज में जन्मे ज्योतिराव फूले (जिन्हे अम्बेडकर जी अपना गुरू मानते थे) को पढ़ने का मौका मिला,फिर आगे चलकर इन्होने सत्य शोधक समाज की स्थापना १८७३ में किये । सतनाम आंदोलन को बढ़ते देख ब्राम्हण वाद तिलमिला उठे और मानव-मानव एक समान की भावना से ओत-प्रोत धर्म सतनाम को तोड़ने के लिये, सतनाम धर्म के समानांतर रामनामी सतनामी और सूर्यवंशी सतनामी पंथ खड़ा कर दिये । और िफर सतनामी समाज में नाना प्रकार के रिति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार के मानने वाले हो गये और यही वह सच्चा कारण है जिसके वजह से हमारी ताकत कमजोर हुई । साथीयो जब समाज ही अलग अलग पंथो में बटकर अलग अलग विचार धारा को मानने लगे है तो एक मत और एक सिद्धांत की बात करना ही गलत है । गुरूजी के सिद्धांत को त्याग अलग हो गये तो िफर किसी ब्यक्ति विशेष के सोंच का औचित्य ही क्या है । लेकिन आज हमे वह कमजोर कड़ी का पता चल चूका है तब हमारी जिम्मेदारी हो जाति है कि उन बुराईयो का त्याग करके जो गुरू जी ने हमारे लिये सच्चे रास्ते बनाये हैं उसमें सभी को चलने-चलाने का कार्य करना है । जब हम सब, फिर से सतनाम धर्म के रास्ते पर चलकर एकता और समरसता का ब्यवहार करेगें तो हमारी ताकत विशाल हो जायेगी,फिर हम सतनामी समाज को वह स्थान पर देख सकते है जो आज के बुद्धजीवी लोगो का सपना है । हमें गर्व है कि हम सतनामी कुल में जनम लिये जिन्होने दुनियाँ को एकता और भाईचारा का संदेश दिया है । और शिक्षा का द्वार सभी के लिये खोलने में अहम भूमिका अदा किये । सतनामी समाज तो एक है परन्तु राजनैतिक पार्टी अनेक तो भला ऐसा कैसे हो सकता है कि सभी के सभी सतनामी भाई किसी एक ही पार्टी से जुड़े, इस बात को हमें समझना होगा । गुरू जी के सतनाम आंदोलन को तोड़ कर रामनामी, सूर्यवंशी सहित अनेको संप्रदायो में विभाजित कर दिये तो किसी एक पार्टी के विचार को माने यह संभव ही नही है। हाँ परन्तु कोई ऐसी पार्टी हो जो सिर्फ सतनामी एवं सतनाम धर्म की बात को लेकर आगे आये तब की बात अलग है । अगर सतनामी समाज को एक सुत्र में बांधा जा सकता है तो वह सिर्फ सतनामी एवं सतनाम धर्म की बात को आगे बढ़ाकर ही किया जा सकता है, इसलिये सबसे पहले प्रयास यह होना चाहिये कि जो सतनामी समाज से अलग होकर पंथ बनाये हैं उन्हे पुनः सतनामी समाज के विचार धारा से जोड़ना ताकि सतनामी और अन्य विचार धारा वाले सतनामी में एकरूपता अाये ।
लेखक- श्री विष्णु बन्जारे सतनामी
सतनाम धर्म की ओर से जनहित में प्रसारित