महतारी के परमान
// महतारी //
(रचना : आचार्य हुलेश्वर जोशी)
महतारी के कोरा म, सरग के सुख ह मिलथे
एक छूअन म दाई ह, पीरा जम्मो हरथे
परान के दांव लगाके दाई, बेटा ल जतनथे
एही परकट देवी, सरग ले उप्पर रथे ………………… महतारी के कोरा
सरी दुनिया ले जब्बर भारी, दाई के इसथान हे
ऐकर बांचे, लगथें, जम्मो मन बईमान हे
दाई-ददा के चरित्तर देखव, भवंसागर म महान हे
तभो ले देखव संगी कइसे, बेटा ह अनजान हे …………. सरी दुनिया
गरभ भीतरी हमन ल दाई, मुरती असन गढ दिस
आए के बाद दुनिया म, अमरित पान कराईस
लोरी सुना अउ लाड पुरो के, सरग इंहे बनाईस
बेटा ल सुखहर बनाये खातिर, सवांसा घलो तियागिस ………… गरभ भीतरी
अमरित जस गोरस जेकर, जनम देवईया माई ए
हाथ धरके रेंगे सिखईया, दुख हरईया दाई ए
रोवत-रोवत सुख देवईया, अईसन पूजनीय दाई ए
सरग बरोबर कोरा वाले, येहीच ह महामाई ए ……………… अमरित जस
09/09/2014
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हम भारत के नागरिकों के लिए भारत का संविधान समस्त विश्व के सारे धार्मिक पुस्तकों से अधिक पूज्यनीय और नित्य पठनीय है। यह हमारे लिए किसी भी ईश्वर से अधिक शक्ति देने वाला धर्मग्रंथ है - हुलेश्वर जोशी
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