चौका पंथी गीत
बीच धारे म बोरे काबर लान के ,
मोला धोखा म डारे काबर जान के ,
मोला धोखा म डारे काबर जान के !२!
(1)-ये ही जगत म पिता कलयुग के राज हावे ,
कलयुग के राज हावे !
जेती देखत हव तेती धरम के नाश हावे ,
धरम के नाश हावे !
मोला ये लोख म भेजे काबर जान के ,
मोला धोखा म डारे ..........................!२!
(२)-दाई ल छीनी डारे ,ददा ल छीनी डारे ,
ददा ल छीनी डारे !
बेटा ल छीनी डारे नारी ल छीनी डारे ,
नारी ल छीनी डारे !
मोला बइहा बनाये काबर जान के ,
मोला धोखा म डारे...........................!२!
(३)-नईहे ठिकाना पिता ये ही जीवन के मोरे ,
ये ही जीवन के मोरे !
जान दे देहूं मै हर नाम ले ले के तोरे ,
नाम ले ले के तोरे !
मोरे साथे ल छोड़े काबर जान के ,
मोला धोखा म डारे काबर जान के ,
मोला धोखा म डारे काबर जान के !
बीच धारे म बोरे काबर लान के ,
मोला धोखा म डारे काबर जान के ,
मोला धोखा म डारे काबर जान के
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मेरे प्रिय सार्थियों इस गाना का शाब्दिक अर्थ बताना चाहूँगा थोड़ा सा -जब परम पूज्य गुरु घासीदास जी बिलकुल अकेला हो गए थे ,माता अमरौतीन तो बालक पन में ही पृथ्वी लोख को छोड़ के सत्लोख चले गए थे ,गुरु घासीदास जी के सिरपुर निवासी अंजोरी गौटिया के पुत्री माता सफुरा के साथ शादी होने के कुछ महीनो बाद बाबा मंहगू भी पृथ्वी लिख छोड़ चुके थे ,शादी के कुछ साल बाद गुरु अमरदास जी पैदा हुए थे ,जिसको बाल्यकाल में ही जंगल में अपने सखा लोगों के साथ लकड़ी लेने गए थे तो सतनाम सत्पुरुष पिता बघवा के रूप धारण करके गुरु अमरदास जी को उठा ले गए थे ,जिसके वियोग में पुत्र वियोग में माता सफुरा भी रो रो के अपनी प्राण त्याग दी थी,उस समय परम पूज्य गुरु घासीदास जी बिलकुल अकेले हो गए थे ,उसे कुछ समझ में नही आ रहे थे की उनके साथ क्या हो गया है, एक प्रकार का ये दुखों का पहाड़ टूट पड़े थे ,तब गुरु घासीदास बाबा जी ने सतनाम सत्पुरुष पिता से ये जो फरयाद किया था और तपो भूमि की और प्रस्थान किये थे तपो भूमि जाते समय सतनाम सत्पुरुष पिता ने उसे परीक्षा लेने के लिए पुनः बघवा के रूप धारण करके उनके पीछे पीछे तपो भूमि को और डराते डराते जा रहे थे आज भी उनके और परम पूज्य गुरु घासीदास बाबा जी के पैर के निशान गिरौद पूरी धाम में विद्यमान है साथियों उसी भाव को इस गाना में दर्शाया गया है ,किसी त्रुटि के लिए क्षमा चाहते है इसके साथ ही एक बार फिर से आप सभी को -साहेब सतनाम
मंगल चातुरे