"श्रापित मछली का उद्धार "
एक बार परम पूज्य गुरु घासीदास बाबा जी जंगल के रस्ते से गुजर रहे थे तभी एक गड्ढे से सतनाम ,सतनाम, सतनाम,सतनाम ,शब्दों की आवाज सुनाई देने लगा गुरु जी इधर उधर देखा उन्हें कोई दिखाई नही दिया तभी वे आवाज की दिशा की ओर बड़ा ,सामने गड्ढे के पास पंहुचा और खड़ा हो गया ,आवाज उसी गड्ढे में रह रहे दो मछली से ही आ रहे थे गुरु जी की परिछई जैसे ही उस गड्ढे में रह रहे मछली के ऊपर पड़ते ही उनका स्वरुप दो इन्शानो में परिवर्तित हो गया, गुरु जी कहे भाई ये सब क्या है, अभी आप मछली थे और अब इन्शान मैंने पहली बार किसी के मुह से सतनाम की गूंज भी सुना हूँ , वे दोनों आदमी जो मछली से इन्शान बने थे वे गुरु जी के करीब गड्ढे से बहार आये और गुरु जी के चरणों में गिर गए और कहने लगे से सतनाम गुरु, सतनाम पिता वो सतनाम,सतनाम का आवाज हमारा ही था, आप हमारा उद्धार कीजिए,पिछले जनम में हम भी इसी इन्शान के रूप में थे ,नित प्रति मछलियों का सिकार करते थे इतना अधिक मछली मारे थे की हम कुछ कह नही सकते सुबह शाम रात कोई समय नही देखते थे, और हमेशा मछली मारने में लगे रहते थे ,गुरु जी हमारा मछली मारने का अपराध इतना घोर हो चूका था की एक दिन मछली मारते समय सतनाम पिता के द्वारा आकाश वाणी हुआ ,और कहे हे मछुवारों तुम लोगों का अपराध इतना घोर हो गया है अत्याचार हो चूका है इसके लिए मै तुम लोगों को श्राप देता हूँ , जावो तुम दोनों भी उसी रूप में चले जावो जिस मछली का तुम रोज सिकार करते आ रहे हो ,हमने उनसे आग्रह किया की हे सतनाम पिता हमारे अपराध के मुक्ति का मार्ग तो बता दीजिये तब उन्होंने कहा था की मै अगले जन्म में गिरौदपुरी में जन्म लूँगा और तुम लोगों का उद्धार करूँगा हम बोले की परम पिता हमारा भेंट आपसे कैसे होगा तो कहे तुम लोग सतनाम, सतनाम, सतनाम,सतनाम ,का रट लगाते रहना जिसका आवाज मेरे अवतरित रूप ही सुन सकता है, सो गुरु जी हे सतनाम पिता के अवतारी पिता आपने हमारा सतनाम की रट की पुकार सुन कर हमारे तक पहुच गए पिता आप हमारा उद्धार करे इस प्रकार साथियों परम पूज्य गुरु घासीदास बाबा जी ने उस दोनों श्रापित मछली का उद्धार किया और हमेशा हमेशा के लिए सतलोख में स्थान दिया l
लेखक : मंगल चातुरे