"आवो वीरों सतनामी ,सतनाम सेना तुम्हारा है "
आवो वीरों सतनामी ,सतनाम सेना तुम्हारा है !
क्यों भटकते इधर उधर ,नहीं कोई तुम्हारा है ,
आवो वीरों सतनामी ,सतनाम सेना तुम्हारा है !
(१)-पहले के तुम राजा थे ,
अब ये कैसा हाल है ,
समझ सके न क्यों तुम भाई ,
ये विरोधियों की चाल है !
हमरे खाये हमें गुर्राये ,
उनका क्या सहारा है..
आवो वीरों सतनामी ,सतनाम सेना तुम्हारा है ..
(२)-वो भी एक जमाना था ,
जब राजा गुरु का नाम रहे ,
आज के ये ज़माना है ,
क्यों सतनामी अपमान रहे !
दुसरे से हम कभी न हरे ,
पर अपनों से हारा है ...
आवो वीरों सतनामी ,सतनाम सेना तुम्हारा है ...
जब राजा गुरु का नाम रहे ,
आज के ये ज़माना है ,
क्यों सतनामी अपमान रहे !
दुसरे से हम कभी न हरे ,
पर अपनों से हारा है ...
आवो वीरों सतनामी ,सतनाम सेना तुम्हारा है ...
(३)-दुश्मनों ने छत्तीसगढ़ को ,
कब से लूटते आ रहे ,
सतनामी को ध्वस्त करके ,
खुशियाँ वो मना रहे !
धन लुटे ये दौलत लुटे ,
इज्जत लुटे ये सारा है ...
आवो वीरों सतनामी ,सतनाम सेना तुम्हारा है ....
(४)-तुम सेर हो छत्तीसगढ़ के ,
क्यों बिल्ली बन जाते हो ,
अपने जमीन और अपने ही घर में ,
क्यों इनसे दर जाते हो ,
याद नही क्या उनकी क़ुरबानी ,
कैसा ये गंवारा है ...
आवो वीरों सतनामी ,सतनाम सेना तुम्हारा है ...
(५)-अलग है बस्ती ,अलग है पनघट ,
अलग मरघट शमशान है ,
सब कुछ गुरुओं ने अलग बनाया ,
तब क्यों तू परेसान है !
घूम घूम के गाँवों में देखो ,
अलग हमारा पारा है ...
आवो वीरों सतनामी ,सतनाम सेना तुम्हारा है ,
क्यों भटकते ,इधर उधर ,नही कोई तुम्हारा है ,
आवो वीरों सतनामी ,सतनाम सेना तुम्हारा है
कवि श्री मंगल चातुरे